18 Jul 2018

गोपालदास नीरज

अब पीड़ा के आलिंगन में कौन ह्रदय से बात करेगा
अब उत्सव के मदिर अधर पर कैसे कोई गीत धरेगा

अब यौवन की बेचैनी से कौन गुथेगा आखर-माला
आखों से रिसते काजल का हाथ बटाएँ कौन उजाला
दुनिया के आंसू की गठरी अब कांधे पर कौन उठाए
निर्मोही बादल को जाके कौन धरा की पीर सुनाए
अब कैसे गीतों से होकर मन तक आएगी पुरवाई
अब कैसे कानों से होकर नैनों में नीरज उतरेगा

अब कैसे जब जेठ मिला तो, हंसकर सावन मान करेगा
अब कैसे मुस्काता मोती, आंसू का सम्मान करेगा
अब पीड़ा के राजकुंवर की कैसे होगी रूपकुमारी
ख़ुश्बू का क्या, जब उपवन ने कर ली चलने की तैयारी
अब कैसे कोई दिन के माथे को चुम्बन से दुलराए
अब कैसे कोई रजनी की अलकों में मधुमास भरेगा

अब किसके होंठों को छूकर सारा जग मधुबन बांचेगा
अब किसकी पीड़ा की पाती दुःख का पूरा कुल जांचेगा
धरती फिर से गीत-प्रसूता अब किस रोज़ बनेगी जाने
अब कोई कैसे जाएगा उठकर हर दिन गीत कमाने
अब कैसे दो अक्षर लिखकर कोई काग़ज़ महकाएगा
अब कैसे कोई भी तिनका आंधी से संग्राम लड़ेगा

© मनीषा शुक्ला

No comments:

Post a Comment