31 Jul 2018

कविता

कोंपल सी पलकों पर आंसू, बोझ नहीं हैं, तरुणाई है
जिन नैनों में नीर नहीं है, वो मरुथल की परछाईं है
गीत कहो या आंसू कह लो, दोनों में कुछ भेद नहीं है
जब से मन पर पीड़ा रोपी, तबसे कविता उग आई है

©मनीषा शुक्ला

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