19 Jul 2018

बस हमारे पाँव देखो!

ये न पूछो, किस तरह हम आ मिले हैं मंज़िलों से,
बस हमारे पाँव देखो!

चन्द्रमा नापो, हमारी पीर का अनुमान होगा
शूल का जीवन हमारे फूल से आसान होगा
हम लहर के वक्ष पर चलते हुए आए यहां तक
रेत पर भी तो हमारा श्रम भरा अनुदान होगा
ये न पूछो, किस तरह तूफ़ान से लड़ते रहे हम,
बस हमारी नाव देखो!

मान बैठे किस तरह तुम यह, सहज दिनमान होगा?
सूर्य निकला तो किसी रजनीश का अवसान होगा
रोशनी के आख़िरी कण से मिलो, मालूम होगा,
वो अगर थक जाएगी तो भोर का नुकसान होगा
ये न पूछो, एक प्राची ने तिमिर का क्या बिगाड़ा?
रजनियों के गाँव देखो!

है हमें विश्वास इक दिन, धीर का सम्मान होगा
लांछनों से कब कलंकित वीर का अभिमान होगा?
मंदिरों से आएगा सुनकर हमारी प्रार्थना जो
देवता चाहे न हो पर कम से कम इंसान होगा
ये न पूछो, एक बिरवा आस का क्या दे सका है?
सप्तवर्णी छाँव देखो!

© मनीषा शुक्ला

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