3 Jul 2018

कल कहीं भगवान होंगे

आज धरती पर उजाला बाँट कर दोषी हुए हम
आज प्रतिबंधित हुए हैं,कल हमीं प्रतिमान होंगे

आज है संदेह तुमको चमचमाते कुन्दनों पर
दंश का आरोप डाला है तुम्हीं ने चन्दनों पर
पर हमें स्वीकार हैं ये भाग्य के सारे छलावे
दोष रहता है शलभ का दीप के अभिनन्दनों पर
आज जो हम में घटित है, कल वही इतिहास होगा
आज निष्काषित हुए हैं, कल कहीं भगवान होंगे

हाँ! हमें स्वीकार हमने आँधियों को बरगलाया
बांध अनुशासन, हवा को भी इशारों पर चलाया
आज नीयत पर हमारी संशयों के बाण छोड़ो
कल इन्हीं चिंगारियों से पूछना, घर क्यों जलाया?
आज ढूंढो तुम हमारे आचरण में लाख अवगुण
कल धरा पर एक हम ही बुद्ध का अनुमान होंगे

रीतियाँ ऐसी रही हैं, विष बहुत सुकरात कम हैं
पाप तो है वंशवादी, पर यहाँ अभिजात कम हैं
रोक पाओगे बताओ किस तरह अन्याय जग में
आज भी जब रावणों से राम का अनुपात कम है
आज हम सच बोलने से दंड के भागी बने हैं
कल हमें उपलब्ध सब पूजन, सुयश, सम्मान होंगे

© मनीषा शुक्ला

No comments:

Post a Comment