1 Aug 2018

सुबह की बांह में आकर तभी तो रात ढलती है

जहां पर प्यार रहता है, उसी की बात चलती है
वहां चिंगारियों को बूंद शबनम की निगलती है
सलीक़ा भी मुहब्बत का यही है इस ज़माने में
सुबह की बांह में आकर तभी तो रात ढलती है

©मनीषा शुक्ला

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