कौन है जो गीत में पल-पल उतरता जा रहा है
कौन, जिसको छू, अपावन होंठ अमृत हो रहे हैं
दीप-से दो नैन नभ में चाँद-तारे बो रहे हैं
कौन है जिससे बिछड़कर, फूल पर है रात रोई
कौन, जिसकी थपकियों पर स्वप्न सारे सो रहे हैं
कौन, जिसको ताकता है चन्द्रमा भी कनखियों से
कौन, जिसके रूप से दरपन संवरता जा रहा है
कौन, जिसके बोलने से, हो रहे हैं शब्द सोना
कौन है जिसकी पलक में है क्षितिज का एक कोना
कौन, जिसका रूप पाकर देह धरती हैं उमंगें
कौन दुनिया को सिखाता, बाँह भर विस्तार होना
कौन छूकर पूरता है सोलहों सिंगार तन में
कौन, जिसको चूमकर यौवन निखरता जा रहा है
कौन है जिसकी पलक में है क्षितिज का एक कोना
कौन, जिसका रूप पाकर देह धरती हैं उमंगें
कौन दुनिया को सिखाता, बाँह भर विस्तार होना
कौन छूकर पूरता है सोलहों सिंगार तन में
कौन, जिसको चूमकर यौवन निखरता जा रहा है
कौन, जिसने तितलियों पर, रंग छिड़के प्यार वाले
कौन डाली पर सजाता, फूल हरसिंगार वाले
डूबकर किसमें हमारी कामनाएं तर रही हैं
कौन देता कीकरों को ढंग सब कचनार वाले
कौन, जिससे जोड़ बंधन ब्याहता सब दुःख हुए हैं
कौन है जो आंसुओं से मांग भरता जा रहा है
कौन डाली पर सजाता, फूल हरसिंगार वाले
डूबकर किसमें हमारी कामनाएं तर रही हैं
कौन देता कीकरों को ढंग सब कचनार वाले
कौन, जिससे जोड़ बंधन ब्याहता सब दुःख हुए हैं
कौन है जो आंसुओं से मांग भरता जा रहा है
© मनीषा शुक्ला
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