5 Sept 2018

समय के वक्ष पर इतिहास

बस निराशा से भरी इक पौध कहकर मत भुलाओ
हम समय के वक्ष पर इतिहास लिखना चाहते हैं

हम संभलने के लिए सौ बार गिरना सीख लेंगे
आंसुओं की आंख में बन दीप तिरना सीख लेंगे
तुम हमें केवल सिखाओ कर्म से अभिमन्यु होना
काल के सब चक्रव्यूहों से उबरना सीख लेंगे
चीर-हरणों की कथाएं मत सुनाओ तुम हमें, हम
द्रौपदी का कृष्ण पर विश्वास लिखना चाहते हैं

चोट खाकर मरहमों का मान करते हम मिलेंगे
हर सफलता से नियति की मांग भरते हम मिलेंगे
तुम न मानों आज हमको भोर का संकेत कोई
कल इसी धरती तले इक सूर्य धरते हम मिलेंगे
आज विश्वामित्र बनकर तुम हमें बस राम कर दो
हम स्वयम ही भाग्य में वनवास लिखना चाहते हैं

हम तभी अर्जुन बनेंगे, द्रोण को जब हो भरोसा
फूलता-फलता नहीं वो पेड़ जिसने मूल कोसा
उस जगह आकर अंधेरा प्राण अपने त्याग देगा
है जहां पर आंधियों ने एक अदना दीप पोसा
तुम निरे संकल्प को बस पांव धरने दो धरा पर
हम सृजन के रूप में आकाश लिखना चाहते हैं

© मनीषा शुक्ला

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