15 Dec 2018

मनाही

चन्द्रमा को पा सशंकित दीप-तारे सब डरे हैं
सूर्य को अब सूर्य कहने की मनाही हो गई है

रश्मियों की शुद्धता की जांच पर बैठे अंधेरे
सांझ को संदेह, कैसे दूधिया इतने सवेरे
रात को अवसर मिला है, भोर को कुल्टा बुलाए
चाँद पर दायित्व है ये, सूर्य पर धब्बे उकेरे
तय हुआ अपराध, बाग़ी हो गया है अब उजाला
और उस पर जुगनूओं की भी गवाही हो गई है

फूल की शुचिता, यहां पर विषलता अब तय करेगी
छू गया है कौन आँगन, देहरी निर्णय करेगी
छांव की निर्लज्जता, जाकर बताती धूप जग को
आज से जूठन प्रसादों पर नया संशय करेगी
बाढ़ बनकर फैलती संवेदनाएँ रोकने को
एक पत्थर की नदी फिर से प्रवाही हो गई है

आरती कितनी कुलीना, अब बताएंगी चिताएँ
आंधियां बतलाएँ घूँघट को कि कितना मुख दिखाएँ
अब नगरवधूएं सिखाएंगी सलीक़ा रानियों को
नग्नता बतला रही है शील को, थोड़ा लजाएँ
रोज़ सच के चीखने से हो न जाए कान बहरे
इसलिए आवाज़ पर ही कार्यवाही हो गई है

© मनीषा शुक्ला

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