दीप धरती आ रही हूँ!
भाग्य से होती पराजित, तो बहुत सत्कार होता
रो अगर देती घड़ी भर, मेघ पर उपकार होता
बुझ अगर जाती बरसती आंख में अंतिम समय भी
सीलती चिंगारियों का आग पर आभार होता
रजनियों की ताल पर लेकिन प्रभाती गा रही हूँ
दीप धरती आ रही हूँ!
रो अगर देती घड़ी भर, मेघ पर उपकार होता
बुझ अगर जाती बरसती आंख में अंतिम समय भी
सीलती चिंगारियों का आग पर आभार होता
रजनियों की ताल पर लेकिन प्रभाती गा रही हूँ
दीप धरती आ रही हूँ!
मैं चुनौती सूर्य की हूँ, जुगनुओं की आन हूँ मैं
प्यास की अड़चन बनी हर बूंद का अभिमान हूँ मैं
मैं दिशाओं को करारा एक उत्तर भटकनों का
मृत्यु साधे वक्ष पर इक प्राण का वरदान हूँ मैं
आंधियों की राह में तिनके बिछाती जा रही हूँ
दीप धरती आ रही हूँ!
प्यास की अड़चन बनी हर बूंद का अभिमान हूँ मैं
मैं दिशाओं को करारा एक उत्तर भटकनों का
मृत्यु साधे वक्ष पर इक प्राण का वरदान हूँ मैं
आंधियों की राह में तिनके बिछाती जा रही हूँ
दीप धरती आ रही हूँ!
हैं अभागी बदलियां जो पीर का भावार्थ होती
रोज़ ख़ुद को ढूंढती हैं, रोज़ अपने-आप खोती
लहलहाएगी किसी दिन ये फ़सल छू कर अधर को
मैं नयन में बस इसी से मोतियों के खेत बोती
घुप अंधेरा चीरने को एक बाती ला रही हूँ
दीप धरती आ रही हूँ!
रोज़ ख़ुद को ढूंढती हैं, रोज़ अपने-आप खोती
लहलहाएगी किसी दिन ये फ़सल छू कर अधर को
मैं नयन में बस इसी से मोतियों के खेत बोती
घुप अंधेरा चीरने को एक बाती ला रही हूँ
दीप धरती आ रही हूँ!
© मनीषा शुक्ला
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