27 Mar 2018

जिस दिन तुम पर गीत लिखेंगे

मन से मन जब मिल जाएगा, काग़ज़ पर भी मन
आएगा जिस दिन तुम पर गीत लिखेंगे, अक्षर-अक्षर बतियाएगा

तुमको पढ़कर मौन हुई हैं, कविता की सारी उपमाएं
गीत हमारे सोच रहे हैं, गीत-सद्य को कैसे गाएं?
हमने ग़ज़लों से भी पूछा, मन की बात कहो तो जानें
मिसरा-मिसरा आज चला क्यों, सांसे लेकर जीवन गाने
सब अर्थों को शब्द मिलेंगे, वो दिन भी इक दिन आएगा
थाम कलाई, दिल का कोना, तुमसे अक्सर बतियाएगा

हम शब्दों के सौदागर हैं, जितना जीते, उतना गाते
आंसू का सत्कार किए बिन, प्रेम कथा में कैसे आते?
कुछ-कुछ कच्चा, कुछ-कुछ पक्का, अनुभव हममें दीख रहा है
जैसे बचपन का पहनावा, यौवन से कुछ सीख रहा है
हम रह जाएं अनबोले तो इसमें कोई शोक न होगा
तुम अपनी हमसे कह लेना, हमसे ईश्वर बतियाएगा 

हम सीता हो जाएं तब तक, राम बने रह पाओगे क्या?
हम गंगा बन जाएंगे, तुम शिव बनकर सह पाओगे क्या?
जिस दिन हम सीखेंगे नैनों से नैनों की भाषा पढ़ना
लोग उसी दिन छोड़ चलेंगे मंदिर बीच शिलाएं धरना
अपनी मन्नत के द्वारे पर, देव बनेंगे पाहुन इक दिन
प्रीत हमारी रंग लाएगी, पत्थर-पत्थर बतियाएगा

© मनीषा शुक्ला

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