प्रीत रंग अंग-अंग रंग दे रंगीले पिया
रोज़-रोज़ रंगना न भाए किसी रंग में
बन के रँगीली नार चलूं ऐसी चाल मैं, कि
परबत बल खाए मोरे अंग-अंग में
पग धरूं धरती में ऐसे इतरा के पिया
धूल भी उड़े है आज कनक के ढंग में
मुसकाउं मद में लुटाऊं ऐसे मुसकान
चाशनी मिला के रख दी हो जैसे भंग में
© मनीषा शुक्ला
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