जब फलित होने लगे उपवास मन का,
धीर धरना!
मौन से सुनने लगो जब एक उत्तर, मुस्कुराना!
चैन से मिलने लगें दो नैन कातर, मुस्कुराना!
एक पल में, सांस जब भरने लगे मन के वचन सब
पीर से जब सीझनें लग जाएं पत्थर, मुस्कुराना!
बस प्रलय से एक बिंदु कम, नयन में नीर भरना,
धीर धरना!
चन्द्रमा के पग चकोरी की तरफ चलने लगेंगे
नैन के भी नैन में प्रेमी सपन पलने लगेंगे
क्या सहा है प्रेम ने बस इक मिलन को, देखकर ही,
छटपटा कर, इस विरह के प्राण ख़ुद गलने लगेंगे
सीख जाएंगे मुरारी, बांसुरी की पीर पढ़ना,
धीर धरना!
खेलने को हर घड़ी सब वार कर प्रस्तुत रहा है
जीतता केवल तभी जब भाग्य भी प्रत्युत रहा है
काम है ये हर सदी में कुछ निराले बावलों का
प्रेम में सब हार कर सब जीतना अद्भुत रहा है
एक तिनके के भरोसे, जिंदगी भर नीड़ गढ़ना,
धीर धरना!
© मनीषा शुक्ला
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