1 Jan 2019

इश्क़ अगर हो जाए

दिन भर काना-फूसी करती, आंखें मुख़बिर हो जाती हैं
इश्क़ अगर हो जाए, सारी बातें ज़ाहिर हो जाती हैं

नैनों में कल कौन रुका था, काजल सब कहने लगता है
ख़ुश्बू था या फूल बदन था, आँचल सब कहने लगता है
आता-जाता हर इक चेहरा, चेहरे को पढ़ने लगता है
जितना मन को बूझो, उतना पागलपन बढ़ने लगता है
धड़कन बनकर उसकी यादें दिल में हाज़िर हो जाती हैं

रोज़ धनक से बैरन मेहंदी जाकर चुगली कर आती है
रात अधूरा चाँद हमारे तकिए पर रख कर जाती है
इन आँखों को आ जाता है शायद कोई जादू-मन्तर
सच है हम या कोई सपना, दरपन हमको देखे छूकर
दिन बाग़ी होते जाते हैं, रातें काफ़िर हो जाती हैं

मन की बेचैनी चुन्नी के कोने पर लटकी रहती है
हर आहट की घबराहट पर सांस कहीं अटकी रहती है
दीवारों के कान उगे हैं, छज्जे बतियाते फिरते हैं
चौपालों ने आँख तरेरी, पनघट मुस्काते फिरते हैं
बचपन की सब सखियां कैसे इतनी शातिर हो जाती हैं

© मनीषा शुक्ला

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